From original English poem :
Voids of Space ( dt 23 Aug 1971 )
https://poemseng.blogspot.com/2013/08/voids-of-space.html
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चलाओ तुम्हारे तिर
बार बार ,
करलो मुझे झख्मी , हज़ार बार ,
निर्दय ज़माना ;
खोल कर
मेरे मन और ह्रदय की भीतर ,
मै खुद को पूछता रहा :
" कहाँ तक है तेरी सिमा ?
कब तक सहोगे यातना
बेरहम ज़माने की ?
पर किसको सुनाऊ ,
उस जीवन की व्यथा ?
कौन , कैसे समझेगा
उस जीवन की कथा ?
जिसे झूमना था बहारों में ,
और कसना था
प्रिया को बांहो में ,
वो जीवन
जो बह गया
अनंत अवकाश में ,
खो गया
समय की
आनेवाली हर साँस में
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02 Oct 2019
Voids of Space ( dt 23 Aug 1971 )
https://poemseng.blogspot.com/2013/08/voids-of-space.html
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चलाओ तुम्हारे तिर
बार बार ,
करलो मुझे झख्मी , हज़ार बार ,
निर्दय ज़माना ;
खोल कर
मेरे मन और ह्रदय की भीतर ,
मै खुद को पूछता रहा :
" कहाँ तक है तेरी सिमा ?
कब तक सहोगे यातना
बेरहम ज़माने की ?
पर किसको सुनाऊ ,
उस जीवन की व्यथा ?
कौन , कैसे समझेगा
उस जीवन की कथा ?
जिसे झूमना था बहारों में ,
और कसना था
प्रिया को बांहो में ,
वो जीवन
जो बह गया
अनंत अवकाश में ,
खो गया
समय की
आनेवाली हर साँस में
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02 Oct 2019
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How far is your limit?
drive towards you
Frequently ,
Wound me a thousand times,
Cruel world;
by opening
within my mind and heart,
I kept asking myself:
"How far is your limit?
How long will you endure the torture?
Of
the cruel times?
But who should I tell it to?
The pain of that life?
Who will understand, how?
The story of that life?
Who wanted to dance in the spring,
had to tighten further
Priya in my arms,
that life
that flowed away
In eternal rest,
lost
of time
in every breath
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Translated In Google Translate - 22/02/2024
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