अब तक तो आँखों की पलकों पर
हमे उठाये हुए हो ,
अगर आँखे बंद कर दोगी
तो हम कहा जाके गिरेंगे ?
हमने तो खौसला पहलेसे ही जला रखा है
अब चाहो तो पंखे भी जला दो !
तुम्हारे चाहनेवाले अगर सैंकड़ो है ,
तो बस इतना ही समज लो तो काफी है
की हम उन में से एक है .
मुझे कबूल है मेरी गुस्ताखी
उसकी सजा शायद तुम न दे पाओगी .
और अपने आप को क्या सजा दूँ ?
बहुत पहले ही ख़ुदकुशी कर चूका हूँ .
और अपने आप को क्या सजा दूँ ?
बहुत पहले ही ख़ुदकुशी कर चूका हूँ .
फिर भी द्रोणाचार्य की तरह
तुम भी तुम्हारे अर्जुन के लिए
मेरा अंगूठा मांग सकती हो -
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