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हम तो यूँही बह गए ;
निकले थे
तुम्हारी आँख के आंसू बनके ,
तुम्हारे ओठों तक
पहुँचने से पहेले ही
सूख गए !
क्या तुम्हारा चहेरा भी
रेगिस्तान होता जा रहा है ?
अगर मेरे गमो की नदी
सूख जाएंगी
तो ,
तुम्हारे उजड़े हुए चहेरे को
कहाँ धो पाओगी ?
मैं अब शोर के काबिल नहीं ,
क्या करोगी सुनके
मेरे मिटने तक का
सन्नाटा ?
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Lucknow / 15 March 1989
www.hemenparekh.in / Poems ( Hindi )
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I'm Not Worth The Noise Anymore
We just got carried away;
had come out
As tears from your eyes,
till your lips
just before arrival
Dried up!
is your face too
Is it becoming a desert?
If the river of my sorrows
will dry up
So ,
your ruined face
Where will you be able to wash?
I am no longer worthy of noise,
what will you do after hearing this
until I die
Silence?
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Translated In Google Translate - 05/03/2024
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