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कैसे कटी ये रात
ए कौन जाने ?
किस सोच में बीती ये रात
ए कौन जाने ?
सोचता रहा
तराज़ू उठाऊ तो कैसे ?
आरज़ू ओ से भरा
पलड़ा तेरा ,
कैसे उठा पायेगा
मेरे गमो का पलड़ा ?
कैसे भूला पाऊं
उस दिन की याद ,
जब आँखे उठाए आसमान की और ,
तू मुज़े ढूंढती थी ?
तुम्हे ढूंढते आज मेरी आँखे
सितारों से हठती नहीं !
रात मेरी कटती नहीं !
जब मंज़िल ना मिली
तब मैंने
यादों के तराज़ू उठा लिया है ,
मेरा पलड़ा भारी हैं !
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