गुज़र गयी
एक अच्छी , खासी , लम्बी दोपहर ,
बारी में से झाँकता रहा ,
अशोक पेड़ की उस डाली को
जो आभ को छूने चली ;
क्या अशोक अनजान है ?
क्या उसे परवा नहीं
उस गुलमोर की
जिस की डालिया
उसे बार बार प्यार से छूती है ?
गुलमोर की डालियो में
न तो पत्ती रही
न फूल ;
पर एक न एक दिन
पत्तियां लौट आएगी ;
क्या अशोक झुक पाएंगा ?
जिस धरती ने उसे
पक्कड़ रख्हा है
उस धरती को
क्या अशोक
कभी न कभी
देख पायेगा ?
==========================
Transliteration from original English " Branches of Gul Mohur " dt 21-3-81 /
एक अच्छी , खासी , लम्बी दोपहर ,
बारी में से झाँकता रहा ,
अशोक पेड़ की उस डाली को
जो आभ को छूने चली ;
क्या अशोक अनजान है ?
क्या उसे परवा नहीं
उस गुलमोर की
जिस की डालिया
उसे बार बार प्यार से छूती है ?
गुलमोर की डालियो में
न तो पत्ती रही
न फूल ;
पर एक न एक दिन
पत्तियां लौट आएगी ;
क्या अशोक झुक पाएंगा ?
जिस धरती ने उसे
पक्कड़ रख्हा है
उस धरती को
क्या अशोक
कभी न कभी
देख पायेगा ?
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Transliteration from original English " Branches of Gul Mohur " dt 21-3-81 /
I have spent
An entire afternoon
Looking at the tip
Of the Ashoka tree
Trying to reach the sky.
Is Ashoka ignorant
Or does it not care for
The caressing
Branches of Gul Mohur
Shorn of all its leaves ?
But may be the leaves
Will someday return
If only Ashoka could
Learn to bend
And look downward
To the earth
Clasping its roots
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